पर्यावरण शुद्ध करने के साथ बैक्टीरिया भी मारेंगी धूपबत्तियां
हवन में प्रयोग होने वाली सामग्री और गाय के गोबर के मिश्रण से बन रहे उपले
लॉकडाउन में 300 महिलाएं रोजगार पाकर बनी आत्मनिर्भर
रत्नेश राय
वाराणसी: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गौ सेवा के प्रति समर्पण व प्रेम से प्रभावित होकर आध्यात्म की नगरी काशी में कुछ महिलाएं देसी गाय के गोबर से सुगन्धित धूपबत्तियां, गणेश लक्ष्मी की मूर्तियां तैयार कर रही हैं। धूपबत्तियों से घरों को महकाने के साथ यह महिलाएं गौ सेवा भी कर रही है। यही नहीं, गोबर से बनी धूपबत्तियां न सिर्फ पर्यावरण को सुरक्षित कर रही बल्कि महिलाओं को रोजगार देकर उनको आत्मनिर्भर भी बना रही हैं।
जिसे मंजिल तक पहुंचने की चाह होती है, वह रास्तों को ढूंढ ही लेते हैं। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है वाराणसी की कुछ महिलाओं ने जिन्होंने गाय के गोबर से सुगंधित धूपबत्तियां तैयार की है। गाय के गोबर से बनी धूपबत्तियों की काफी डिमांड भी है। इससे इन महिला उद्यमियों को काफी आय भी हो रही है। वाराणसी की महिला उद्यमी रीता तिवारी ने गाय के गोबर से धूपबत्ती बनाने की कला को ईजाद किया । इससे रीता तिवारी की आय तो बढ़ी ही है, साथ ही उन्होंने 300 गरीब महिलाओं को रोजगार देकर अपने पैरों पर खड़ा किया हैं।
300 महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर
रीता तिवारी के मुताबिक लॉकडाउन के दौरान वह एक बस्ती में गरीबों को खाना बांटने गई थीं। भोजन वितरण के दौरान इन परिवारों का स्वाभिमान जाग उठा। महिलाओं ने कहा मुझे खाने को नहीं चाहिए। कुछ करना ही है तो हमें किसी रोजगार से जोड़िए ताकि हम लोग आत्मनिर्भर बन सकें । इसके बाद उन्होंने ठान लिया की इन गरीब महिलाओं को रोजगार देकर आत्मनिर्भर बनाना है । रीता तिवारी बताती हैं कि मुश्किल यह थी कि इन महिलाओं को कैसे रोजगार देकर आत्मनिर्भर बनाया जाए, तभी सड़क पर पड़ी घायल गाय नजर आई। मैंने गाय के स्वामियों को प्रस्ताव दिया कि वे गाय के गोबर को खरीदेंगी लेकिन शर्त ये होगी की उसके पैसे से व गाय को चारा खिलाएंगे और दूध न देने वाली गाय को सड़क पर नहीं छोड़ेंगे।
इसके बाद रीता तिवारी ने नागपुर के स्वानंद गो विज्ञान केंद्र से सम्पर्क साधा और प्रशिक्षण लिया। फिर वह देसी गाय के गोबर से धूप-बत्ती बनाने के काम में जुट गई। वहीं, लॉकडाउन के दौरान जिनके कामकाज प्रभावित हुए। सबसे पहले उस घर की 20 महिलाएं उनके साथ जुड़ी। धीरे -धीरे इस रोजगार से 300 महिलाएं जुड़कर आत्मनिर्भर हो चुकी हैं। जो रोजाना 200 से 300 रूपए कमा लेती हैं।
ऐसे तैयार होती है धूपबत्ती
रीता तिवारी बताती है कि गाय अपने गोबर और गो-मूत्र से ही अपने खाने का खर्च निकाल सकती है। गाय में तैंतीस कोटि देवी देवताओं का वास होता है। ऐसे में केवल देसी गाय के गोबर में जड़ी बूटियों का प्रयोग करके धूप स्टिक, धूप कप ,कोन कप बनाए जाते हैं। धूपबत्ती में ब्राह्मी, जटामांसी, शंखपुष्पी, अगर-तगर, गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, पानरी, लौंग, इलायची, बालछड़, कपूर कचरी, नागरमोथा, बालकंगनी, रुद्राक्ष की लकड़ी, नौग्रह की लकड़ी, राल, लोबान मिलाया जाता है। वहीं समब्रानी कप में ब्राह्मी, जटामांसी, शंखपुष्पी, अगर-तगर , गुग्गुल, जायफल, दालचीनी, पानरी, लौंग, इलायची, बालछड़, कपूर कचरी, नागरमोथा, बालकंगनी, रुद्राक्ष की लकड़ी, नौग्रह की लकड़ी, राल आदि मिलाया जाता है।
यही नहीं गोबर से ही गणेश लक्ष्मी की खूबसूरत और इको फ्रेंडली मूर्तियां भी महिलाओं के समूह तैयार करते हैं। इन मूर्तियों को रंगने में प्राकृतिक रंगो का इस्तेमाल किया जाता है। हवन सामग्री में गाय का गोबर मिलाकर उपले बनाये जाते है ,जिसे हवन में इस्तमाल किया जाता है।
विशेषज्ञ ने कहा बैक्टीरिया मारती है गाय की बनी धूपबत्ती
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के मदन मोहन मालवीय शोध केंद्र के चैयरमैन और पर्यावरणविद डॉ बीडी त्रिपाठी बताते है की जिन सामग्रियों से धूपबत्ती बनाई जा रही हैं। उसमें क्षारीय और औषधिगुण वाले पौधों की लकड़ियां व छाल है। जिनको जलाने पर जो धुआं निकलता है। उससे हानिकारक और रोगकारक बैक्टीरिया मर जाते हैं और वातावरण भी शुद्ध होता है।
वहीं, बाजार में बिकने वाली और इम्पोर्ट होकर आने वाली गणेश लक्ष्मी की मूर्तियों में क्रोमियम , निकिल और एल्मुनियम जैसे घातक रासायनिक पदार्थ पाए जाते हैं। इन पदार्थों से तैयार मूर्तियां गंगा नदी में विसर्जन के बाद गंगा जल को प्रदूषित करती हैं। जिसके कारण जलीय जीव जन्तुओं के साथ ही मनुष्यों पर भी इसका हानिकारक प्रभाव पड़ता है |