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उत्तर प्रदेश चुनाव 2022 : जीत किसकी ?

डाॅ अवध नारायण त्रिपाठी

दिल्ली की कुर्सी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है , यह बात सभी मानते हैं। देश का सबसे बड़ा राज्य और सबसे ज्यादा सांसद वाला राज्य।एक बात हम नहीं समझ पाए आखिर भाजपा तो 2017 में पहली बार उत्तर प्रदेश में सत्ता में आई। उसके करीब तीन दशक पहले से ही काॅग्रेस उत्तर प्रदेश की सत्ता से बेदखल हो गयी थी । क्षेत्रीय दल सपा व बसपा बारी बारी सत्ता बदल रहे थे लेकिन दिल्ली की कुर्सी पर यह तो कभी काबिज नहीं हुए । हाँ, मलाई के भागीदार जरूर रहे ।


एक लम्बे अंतराल के बाद 2014 में हताश व निराश भारतीय जनमानस को नरेन्द्र मोदी के रूप में एक उम्मीद की किरण दिखी । इस उम्मीद के पीछे उनका तीन बार का गुजरात का एक सफल मुख्यमंत्री का कार्यकाल था । फलतः पहली बार  काॅग्रेस से इतर भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार केन्द्र में बनी । नरेन्द्र मोदी ने बनारस ( काशी ) को अपना संसदीय क्षेत्र के रूप में चुनकर उत्तर भारत व उत्तर प्रदेश को एक बड़ा संदेश देने का काम किया और वह इसमें सफल भी हुए ।


2014 की जीत का असर या मोदी का जादू आप जो भी कहें 2017 के उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में एकबार फिर सबके सिर चढ़कर बोला और भाजपा अप्रत्याशित संख्या में कुल 403 में तीन सौ पार ( 325 भाजपा व सहयोगी दल ) सीट जीतने में सफल रही ।
अब सवाल था उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी किसे दी जाय और अंततः योगी आदित्य नाथ जी को मुख्यमंत्री का दायित्व दिया गया । योगी जी गोरखपुर से सबसे कम उम्र में सांसद बने थे और लगातार जीत हासिल की थी लेकिन शासन प्रशासन का अनुभव उनको नहीं था । स्वाभाविक रूप से आरंभ के दिनों में उन बारीकियों को समझने में समय लगा और फिर जब काम को गति देने की बारी आयी तो कोरोना रूपी वैश्विक महामारी ने सारी प्राथमिकताओं को पीछे छोड़ दिया ।


एक ऐसी अज्ञात बीमारी जिसका आतंक ऐसा था कि पिता पुत्र को भी छूने से डरता था । मरने पर शव को घाट ले जाने अथवा अंतिम संस्कार या ब्रह्म भोज तक  में भी कोई सम्मिलित नही हो रहा था । ऐसे में योगी ने दृढ़ इच्छाशक्ति दीखाते हुए उत्तर प्रदेश के हर जिले का बार बार दौरा किया और हर परेशानी को दूर करने की कड़ी मेहनत की ।यहाँ तक कि खुद कोरोना संक्रमित होने के बावजूद उससे ठीक होते ही पुनः उसी ऊर्जा से प्रदेश की जनता की सेवा में लग गये । जबकि अन्य सभी विपक्षी दल के राजनेता अपनी जान की चिन्ता कर प्रदेश व देश में सोशल मीडिया के माध्यम से , जनता को डराने , अवसाद पैदा करने तथा  नकारात्मकता का भाव फैलाने में अपनी ऊर्जा लगा रहे थे । एकमात्र उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ही ऐसा नेता थे जो दिनरात जमीन पर जनता के बीच जाकर अस्पताल की सुविधा, आक्सीजन की उपलब्धता, जरूरी दवाओं, पी पी ई किट आदि की उपलब्धता की व्यवस्था कर रहे थे। और अंततः जब भारत के वैज्ञानिकों ने कोरोना की वैक्सीन बनाने में सफलता अर्जित की तो विपक्ष ने उसे भाजपा की वैक्सीन कहकर जनता को वैक्सीन नही लगवाने के लिए भी भडकाया , जो राजनीतिक गिरावट की पराकाष्ठा थी । खुद तो चुपके से वैक्सीन लगवा ली लेकिन उनकी कोशिश थी कि लोग वैक्सीन न लगवाएं और अधिक से अधिक लोगों की मौतें हो ताकि वह उनकी मौत पर राजनीति कर सरकार को बदनाम कर घृणित तरीके से सत्ता को हथिया सकें। ईश्वर की कृपा से वह अपनी इस घटिया सोच को पूरा करने में सफल नहीं हो सके ।

यहाँ तक कहा गया कि पहले वैक्सीन प्रधानमंत्री लगवाएं तब जनता लगवाएगी लेकिन प्रधानमंत्री की अनथक कोशिश , समर्पण व सेवा भाव की पराकाष्ठा से सब कुछ बहुत ही व्यवस्थित तरीके से सम्पन्न हुआ और जब प्रधानमंत्री को वैक्सीन लगवाने की बारी आई तो वह सुबह ही एम्स पहुँच कर वैक्सीन लगवाकर जनता को अपना संदेश दे दिए । फिर विरोधियों ने वैक्सीन की कमी व अन्य दलों द्वारा शासित राज्यों के साथ भेदभाव का आरोप लगाया लेकिन वह सब बेमानी साबित हुआ ।


इन परिस्थितियों से जूझने के बावजूद योगी ने नये अस्पतालों के निर्माण पर बल दिया । स्वास्थ्य सेवाओं को नयी ऊँचाई दी । ढाॅचागत विकास , सड़कों का व्यापक निर्माण, कानून व्यवस्था पर विशेष ध्यान और माफियाओं के साम्राज्य को ध्वस्त कर उनपर बुलडोज़र चलाकर एक अलग कार्य संस्कृति को राजनीति में स्थापित किया । उत्तर प्रदेश एक बीमारू राज्य से विकास की दौड़ में अपनी भूमिका निभाने लगा । एक जिला , एक उत्पाद ( One District , One Product ) ने हर जिले की अपनी अलग पहचान को स्थापित करने का सुअवसर दिया ।


इन तमाम परिस्थितियों में 2022 का विधानसभा का चुनाव आ गया । देश प्रदेश वैश्विक महामारी से अभी जूझ ही रहा था । गरीबों को मुफ्त राशन , मुफ्त गैस , मुफ्त शौचालय , मुफ्त आवास तथा कमजोर किसानों के खाते में सीधे रुपये 2000/- भेजना आदि जनकल्याण की योजनाओं को भी चलाना । इसी बीच कृषि कानूनों के खिलाफ चला लम्बा आन्दोलन जिससे सरकार को कृषि कानून वापस लेने पड़े। लेकिन योगी राज में जाति विशेष के नेताओं को,  जिनको पूर्व में सत्ता से जुड़कर मलाई खाने की जो आदत थी , वह पूरी न होने से उनमें अंदरखाने आक्रोश था लेकिन योगी जी भ्रष्टाचार तथा भ्रष्टाचारियों से समझौता करने को तैयार नही थे । ” न खाएंगे, न खाने देंगे ” की नीति ने राजनीति की परिभाषा ही बदल दी थी यद्यपि कुछ अपवाद जरूर रहे ।


चुनाव की घोषणा होते ही सभी राजनीतिक दल अपनी पूरी ऊर्जा,  झूठ की गठरी के साथ ,छुटभैये जातिवादी नेताओं का गठजोड़ बनाकर जनता के धन को लूटने के लिए गोलबंद होने लगे । लेकिन सबकी अपनी महत्वाकांक्षा थी ऐसे में यह तालमेल बहुत प्रभावी नही हो सका। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने रालोद के जयंत चौधरी से जाट वोटों के लिए समझौता किया तो आजम खाॅ जैसे अन्य मुस्लिम नेताओं से मुस्लिम मतों के लिए,ओम प्रकाश राजभर,  राजभर समाज के लिए तो चुनाव के पहले स्वामी प्रसाद मौर्य व दारा सिंह चौहान अपनी अपनी जाति के रक्षक बनकर सपा से जुड़ गये ।


 लेकिन काॅग्रेस व बसपा सभी सीटों पर अलग लड़ी।  आम आदमी पार्टी , ओबैसी व भीम आर्मी दल से भी सपा समझौता नहीं कर पाई ।
यह पहला चुनाव था जो कोरोना प्रोटोकॉल के तहत हो रहा था । प्रथम के तीन चार चरण तो रैली आदि की भी इजाजत नहीं मिली । इन परिस्थितियों में मीडिया ने भी अहम् भूमिका निभाई और इस चुनाव को द्विकोणीय बनाने में पूरी ताकत लगा दी । लगा जैसे चुनाव में बस सपा और भाजपा ही हैं।  बंगाल के पैटर्न पर भाजपा विरोधी मतों के ध्रुवीकरण की पूरी रूपरेखा तैयार की गयी और मुस्लिम मतदाता भी भाजपा के खिलाफ एकमुश्त सपा को मत देकर उत्तर प्रदेश में बंगाल को दुहराने की कोशिश कर रहे थे । लेकिन यहाँ स्थिति भिन्न थी ।


एक तरफ प्रधानमंत्री मोदी ,( जिनके कुशल नेतृत्व में भारत की विश्व में एक अलग पहचान बनी है , जिसे रूस यूक्रेन युद्ध में हम सभी ने देखा। ) तथा योगी के नेतृत्व में भाजपा और उनके काम तथा जमीनी स्तर पर पार्टी का संगठन और दूसरी तरफ बालू की दीवार पर कमर कसे विपक्ष । अपनी जमीन तलाशती व वंशवाद को मजबूत करने उतरी प्रियंका गाँधी ; अपनी निजी महत्वाकांक्षा और अकूत धन संग्रह के महल में कैद थकी हारी बहन जी ; मुस्लिम मतों को धर्म के नाम पर कब्जाने को आतुर ओबैसी तथा मुफ्तखोरी के शाहंशाह केजरीवाल के दल अपनी पहचान बनाने की असफल कोशिश में जुटे थे तो सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने विपक्षी मीडिया के सहारे माहौल बनाकर भाजपा को घेरने की भरपूर कोशिश की।  लेकिन आजम खान , नाहिद हसन और मुख्तार अंसारी के बेटे को टिकट देकर उन्होंने यह संदेश दे दिया कि उनकी प्राथमिकता क्या है ? रही सही कसर उनकी रैलियों में उनके समर्थकों की गुण्डागर्दी ने एकबार पुनः जनता के दिलो-दिमाग में 2012 से 2017 के गुण्डा राज की याद ताजा कर दी और आमजन दंगा फसाद से मुक्त प्रदेश की खुशहाली के लिए भाजपा को जरूरी समझा । यद्यपि पुराने विधायकों से अच्छी खासी नाराजगी और उनको दुबारा टिकट देने के गुस्से के बावजूद जनता ने खासकर सभी जाति धर्म की महिलाओं ने मोदी योगी सरकार की पुनः वापसी के लिए कमल के फूल का ही बटन दबाया । 


उत्तर प्रदेश की जनता ने यह स्पष्ट संदेश दिया कि जाति धर्म की राजनीति के दिन गये , अब जो जनता के हित , कानून व्यवस्था को ठीक रखने , सुनियोजित माफियातंत्र का किला ढाहने का काम करेगा , जनता का आशीर्वाद उसे ही मिलेगा । मोदी योगी की यह जीत उनके लिए उत्सव की नहीं , बड़ी जिम्मेदारी को निभाने का संकल्प पत्र है और उत्तर प्रदेश की जनता को अपने इन जननायकों पर पूरा भरोसा है । इस प्रकार 2022 की उत्तर प्रदेश में भाजपा की जीत सही मायनों में जनता की जीत है और जीत है सच्चे लोकतंत्र की जिसने परिवारवाद , जाति व संप्रदाय वाद और मुफ्तखोरी के लोक लुभावन वादों की जगह एक ईमानदार,  योग्य व जन सरोकार के लिए समर्पित नेतृत्व पर भरोसा किया और उसे पुनः यथेष्ट बहुमत देकर पाॅच साल तक निर्बाध विकास कार्यों को जारी रखने पर मुहर लगा दी और साथ ही मुहर लगा दी दंगामुक्त प्रदेश बनाए रखने व बुलडोज़र को भी गतिमान रखने के निर्णय पर । जय हिन्द।

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