मनीष मिश्रा,
वाराणसी। बीएचयू के भारत अध्ययन केन्द्र में छत्रपति शिवाजी का पुनःस्मरण और भारतीय राजनीति’’ का शुभारम्भ हुआ। मुख्य वक्ता चेयर प्रोफेसर राकेश उपाध्याय, भारत अध्ययन केन्द्र ने कहा कि मध्यकाल में छत्रपति शिवाजी का उद्भव भारतीय सनातन धर्म संस्कृति एवं समाज की रक्षा का सफल राजनीतिक अनुप्रयोग रहा है। छत्रपति शिवाजी ने धर्म रक्षार्थ ऐसा संकल्पबद्ध उत्थान किया कि तत्कालीन मुगल साम्राज्य का अस्तित्व संकट में पड़ गया।
प्रो0 उपाध्याय ने कहा कि शिवाजी के पुनःस्मरण में उनके द्वारा मिर्जाराजा जय सिंह को लिखा पत्र एक उपयुक्त ऐतिहासिक दस्तावेज है। शिवाजी ने अपने साम्राज्य विस्तार अभियान के दौरान किसी धर्म स्थल, धर्म ग्रन्थ और उसके अनुयायियों को धार्मिक घृणा की भावना में क्षति नहीं पहुँचाई।
शिवाजी ने ‘शठे शाठ्यम् समाचरेत’, की कौटिल्य नीति का प्रयोग किया। देश को सुदृढ़ नौसेना की सौगात दी। जागीरदारी को चुनौति दी। केन्द्रीकरण की प्रवृत्ति को नकारकर अष्टप्रधान व्यवस्था के द्वारा हिन्दवी स्वराज्य का संचालन किया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में सामाजिक विज्ञान संकाय के संकाय प्रमुख प्रो0 आर0पी0 पाठक ने कहा कि ब्रिटिश सम्राज्य के आगमन के पूर्व शिवाजी की देश भक्ति की तुलना आधुनिक काल में सिर्फ माओत्सेतुंग से की जा सकती है। शिवाजी ने भारतीय धर्मशास्त्र का निर्वाह करते हुए भारतीय अर्थशास्त्र के अनुकूल व्यवहार को स्थापित किया। जो कि वर्तमान में भी प्रासंगिक है।
धन्यवाद ज्ञापन डा0 ज्ञानेन्द्र नारायण राय ने और संचालन डा0 अनूपपति तिवारी ने किया। व्याख्यान के दौरान विश्वविद्यालय के विभिन्न संकायों के विद्वान् और छात्र उपस्थित थे डा0 समीर पाठक, डा0 मन्जू द्विवेदी, आशुतोष पाण्डेय (भारतीय प्रकाशन), डा0 हरिशचन्द्र पाण्डेय, डा0 मलय कुमार झा, डा0 अमित कुमार पाण्डेय, कृष्णकान्त यादव आदि उपस्थित थे।