रत्नेश राय
वाराणसी: विधानसभा चुनाव में मज़हब और जातीय समीकरण की चर्चा हो रही है। विपक्षी पार्टियां जातीय समीकरण और जोड़तोड़ के राजनीति में जुटी हुई हैं। वहीं भाजपा सरकार ने काशी में खरबों रुपये खर्च करके पिछले 7 सालो में विकास का जो ताना-बाना बुना है, वह उत्तर प्रदेश सहित देश के अन्य प्रदेशों के लिए नजीर बन रहा है।
अध्यात्म, धर्म और सांस्कृतिक नगरी काशी में 2014 के बाद परिवर्तन का एहसास होने लगा। वाराणसी में मोदी के आने के पहले ही उनका ग़ुजरात का विकास मॉडल बनारस पहुंच चुका था। अब 2022 में वाराणसी का विकास मॉडल देश के सामने है। सात सालो में विकास का पहिया ऐसा घुमा की काशी का कायाकल्प होने लगा। वाराणसी में विकास का पहिया तब रफ़्तार पकड़ा, जब 2017 में उत्तर प्रदेश में योगी की सरकार बनी। स्वास्थ, शिक्षा, रोजग़ार जैसी मूलभूत ढांचा तैयार हुआ। सरकार ने सैकड़ों योजनाओं में खरबों रुपए खर्च किए।
सोमनाथ से विश्वनाथ की धरती पर पहुंचा विकास का मॉडल अब ग्लोबल होने लगा है। काशी के विकास के मॉडल की चर्चा अब विदेशों में भी होने लगी है। 2014 में प्रधानमंत्री लोकसभा का नामांकन करने आए थे, तब उन्होंने कहा था मै आया नहीं हूँ, मुझे माँ गंगा ने बुलाया है। उसी माँ गंगा की गोद में मोदी कई देशों के राष्ट्राध्यक्षों के साथ सैर की।
विदेशी मेहमानों को विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती दिखाया। जर्मनी के राष्ट्रपति फ्रैंक-वॉल्टर स्टेनमेयर, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रो और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने जब भारत की यात्रा की तो काशी में अन्तरराष्ट्रीय रिश्तों की नई इबारत लिखी जाने लगी। विकास के अंतरराष्ट्रीय फलक पर वाराणसी चमकने लगा और राजनीति की धुरी बनने लगा।
अप्रवासी भारतीय संमेलन, देश भर के महापौर और कई प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने भी वाराणसी के विकास के मॉडल को देखा। काशी फिल्म फेस्टिवल जैसे तमाम राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय आयोजन की साक्षी बनी। श्री काशी विश्वनाथ धाम के लोकार्पण समेत ढेरों योजनाएं काशीवासियों के जीवन को सरल और सुगम बनाने के साथ ही रोजगारपरक साबित हो रही है। इससे वाराणसी ही नहीं बल्कि पूरा पूर्वांचल लाभान्वित हो रहा है।