प्रतिरोधक क्षमता वृद्धि व वासन्तिक ऋतुचर्या से करें कोरोना पर प्रहार- प्रो. आनन्द चौधरी, बीएचयू

  • वासंतिक ऋतुचर्या  का पालन  करें 
  • साथ में सरकार के निर्देशों का करें पालन
  • लाइसेंस धारी द्वारा निर्मित सैनिटाइजर का ही प्रयोग करें

आशुतोष त्रिपाठी

वाराणसी । कोरोना वायरस जनित वैश्विक महामारी से मचे हाहाकार ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को यह वक्तव्य देने को बाध्य किया कि इस विश्वव्यापी महामारी को रोकने के लिये “ भारत” की प्रमुख भूमिका है. तब यक्ष प्रश्न यह उठता है कि भारत इसके लिये क्या उपाय कर रहा है ? क्या भारत इसे रोकने में सिर्फ आधुनिक विज्ञान के मानको पर आधारित हो यह प्रतिकार करेगा ?

क्या  भारत सहस्त्र वर्षो से परीक्षित भारतीय संस्कृति के विधान एवं मूल्यों को भी कोरोना के युद्ध को जितने के लिए अपनायेगा ? क्या  भारतीय जन मानस  एवं  शासक स्वयं की धरोहर एवं ज्ञान का भी कुछ लाभ उठाने का इमानदारी से प्रयत्न करेंगे या सिर्फ “नमस्ते इंडिया“ के नारे तक ही सीमित रहेंगे ? यह बात प्रो. आनन्द चौधरी विभागाध्यक्ष, रस शास्त्र एवं भैषज्य कल्पना विभाग आयुर्वेद संकाय, बीएचयू ने newslab24.in से विशेष बातचीत में कही.

उन्होंने बताया कि लगभग सभी भारतीय  “आयुर्वेद” नाम से परिचित है और इसके बारे में अपने ज्ञान के अनुरूप धारणा, विश्वास के साथ साथ अनेक  मानसिक ग्रंथियों से ग्रसित भी है.  विशेष रूप से तथाकथित अत्यन्त उच्च डिग्री धारी अभिजात्य वर्ग. किन्तु प्रकृति ने आपको अपनी संस्कृति पर लौटने की चेतावनी दे दी है. वह संस्कृति जो प्रकृति का विनाश नहीं करती है. आइए, अविलम्ब इसका पालन सुनिश्चित कर स्वयं प्रकृति का रक्षण करें. आयुर्वेदीय शास्त्रीय ग्रन्थों यथा चरक संहिता, सुश्रुत संहिता एवं अष्टांग हृदय आदि ग्रन्थों में प्रकृति की सन्तुलन विधि को “जनपदोध्वंश“ शीर्षक से वर्णित किया है. इस स्थिति में मनुष्य जाति के रक्षण के विधियों की भी चर्चा की है. हमें उन पर ध्यान देना होगा.

आज हम आपका ध्यान उन तथ्यों की तरफ आकर्षित करेंगे जिनसे आपकी, समाज की, देश की एवं अंततोगत्वा विश्व स्वास्थ्य संगठन की अपेक्षा के अनुरूप सम्पूर्ण संसार की रक्षा होगी. यह विदित है कि इस समय वसन्त ऋतु का आगमन हो चूका है जो अंग्रेजी कैलेंडर से 19 अप्रैल तक है तो क्यों न हम सभी आयुर्वेद में वसन्त ऋतु वर्णित ऋतुचर्या के अनुरूप अपनी दिनचर्या एवं रात्रिचर्या का पालन तत्परता से कर स्वयं को कोरोना से सुरक्षित करें.

वासंतिक ऋतुचर्या – 

वसन्त ऋतु में  कफ के रोग होते हैं जैसे की सर्दी सुखी खांसी, अस्थमा, कफज ज्वर, बुखार, निमोनिया, फ्लू, खसरा, त्वचा की बिमारियां, छाती का दर्द, सर दर्द, गले का दर्द, साइनस, आम वात की सूजन बढ़ जाना, बच्चों की बीमारी में वृध्दि। कई संक्रामक रोग का फैलाव भी इस ऋतु में बढ़ जाते हैं. लोगों को अनेक मौसमी बीमारियों का भी सामना करना पड़ता है. इन सब बीमारियों से बचने का उपाय है उचित आहार और विहार का पालन करना.

 पथ्य आहार-विहार-

पुराने जौ, गेंहू, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि धानों का आहार श्रेष्ठ है. मूंग, मसूर, अरहर एवं चने की दालें तथा मूली, घीय, गाजर, बथुआ, चौलाई, परवल, सरसों, मेथी, पालक, धनिया, अदरक आदि का सेवन हितकारी है. वमन, जलनेति, नस्य एवं कुंजल आदि हितकर है. परिश्रम, व्यायाम, उबटन और आंखों में अंजन का प्रयोग हितकर है.शरीर पर चंदन, अगर आदि का लेप लाभदायक है. शहद के साथ हरड़, प्रातःकालीन हवा का सेवन, सूर्योदय के पहले उठकर योगासन करना एवं मालिश करना हितकर है.

ये सभी उपाय व्यक्ति को स्वस्थ रखेंगेI और यदि व्यक्ति स्वस्थ है तो उसकी व्याधि प्रतिरोधक क्षमता उच्च कोटि की होगी. व्याधि क्षमता उच्च कोटि की होने पर कोरोना वायरस के संक्रमण के पूर्व, मध्य एवं पश्चात भी मनुष्य शारीर को लाभ ही होगा.

दिनचर्या एवं रात्रिचर्या-

दिन में तीन बार लघु सुपाच्य भोजन करें. ये नहीं होना चाहिए कि लॉक डाउन में घर में है तो गरिष्ठ व्यंजनों का स्वाद ले रहे है, इससे आप अपने शारीर के सामान्य काम काज में गतिरोध उत्पन्न करते है. और जन शारीर के सामान्य प्रणाली में गतिरोध होगा तो आपकी प्रतिरोधक क्षमता में कमी आयेगी जो कि कोरोना वायरस के संक्रमण होने पर अत्यन्त हानिकारक हो आपके जीवन पर खतरा उत्पन्न करेगा. अतः सुपाच्य सामान्य भारतीय भोजन करेंI मांसाहार न करें तो उत्तम होगा क्यों कि ये पचने में भारी होता है.

रात में सम्पूर्ण नीद लें –

भारतीय संस्कृति के अनरूप जल्दी  सोएं और प्रातः काल जल्दी उठें. लॉक डाउन की स्थिति में देर तक रात्रि जागरण न करें. इससे शारीर की कार्य प्रणाली पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा और आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता काम होगी. अर्थात आप कोरोना के संक्रमण होने की अवस्था में अपनी रक्षा करने में सक्षम नहीं होंगे.

सामान्य आचरण से रोकथाम के उपाय-

निर्धारित मानक के मास्क पहने, मास्क की दोनों सतहों को निरन्तर प्रतिदिन साफ़ करें, साबुन से हाथ धोएं विशेष रूप से नीम, हरिद्रा से निर्मित, मेडिमिक्स साबुन के विभिन्न, हिमालया कम्पनी के द्वारा निर्मित हर्बल साबुन जिनमे नीम एवं अन्य वनस्पतियों की प्रमुखता है.

सैनिटाइजर का प्रयोग में सावधानी बरतें- अनेक मुनाफाखोरो ने नकली सनितिज़ेर बाजार में उतार दिये है, जिससे कि लोगो के हाथ जलने की भी घटनाएं हो रही है. प्रमाणिक कम्पनियों के सैनिटाइजर का ही प्रयोग करें. इसमें घटक के रूप में वांछित अल्कोहल का प्रकार एवं प्रतिशत की जांच अवश्य कर लें. विभिन्न मानक संगठनों यथा आईएसआई, ड्रग लाइसेंस धारी द्वारा निर्मित सैनिटाइजर का ही प्रयोग करें.

विशिष्ट आचरण से रोकथाम के उपाय-

उन्होंने बताया कि व्यक्ति विशेष को चेहरे पर स्थति सभी छिद्रों अर्थात मुख, नाक, आँख एवं कान को स्वच्छ रखना है विशेष रूप से मुख को. इसके लिये मुख में इलायची, काली मिर्च, लौंग, मुलेठी एवं दालचीनी को मुख में रख चूषण करें जिससे की इसमें स्थित वोलेटाइल आयल से आपका मुख स्वच्छ रहेगा और किसी भी तरह के संक्रमण की संभावना कम होगी. आयुर्वेद मतानुसार दातून का प्रयोग करें जिसमे की नीम बबूल आदि प्रमुख हैI दिन में औषधीय गर्म पानी से गरारा करते रहें.

धार्मिक एवं आध्यात्मिक आचरण से रोकथाम के उपाय- अपनी मानसिक उर्जा को अवसाद से बचाने हेतु अपने धर्म के अनुसार कुछ पाठ करें मनन चिन्तन करें.  सोशल मीडिया के उन नास्तिक प्रलापों के बहकावे में न आएं कि ईश्वर है तो ताले में क्यों बन्द है. अपनी भारतीय संस्कृति के मान्यता के अनुरूप घर पर रहते हुए मानसिक पूजन करें. गुग्गुल एवं कपूर युक्त सामग्री से हवन करें. इससे आप लॉक डाउन के दुष्प्रभाव जनित अवसाद से ग्रसित नहीं होंगे आपके शारीर की आतंरिक उर्जा उच्च स्तर पर होगी अर्थात आपके शारीर का व्याधि प्रतिरोधक क्षमता पूरी क्षमता से आपकी कोरोना के संक्रमण से रक्षा करेगी.

समाज के द्वारा अनिवार्य रूप से पालनार्थ-  

समाज को रिश्तेदारी अब दूर से निभानी होगी जहां तक सम्भव हो दूरभाष पर ही सम्पर्क में रहे. “अतिथि देवो भव“ के सिद्धान्त को सिर्फ रूग्ण सेवा तक ही सीमित रखें. अपने घर में रहते हुये भी परिवार के अन्य सदस्यों के साथ दूरी बनाये रखे यदि आप अत्यन्त आवश्यक कार्य से बाहर गये हो तो यथोचित समय तक अपने परिवार के बुजुर्गो एवं बच्चो से दूरी बनाएं. किसी भी तरह के टोटके पर विश्वास न करें. आप कोरोना से सिर्फ सामाजिक दूरी बनाते हुए ही जीत सकते है. मधुमेह के रोगियों का विशेष ध्यान रखे क्यों कि उनकी शारीरिक क्षमता कमजोर होती है. नमस्ते इंडिया का कड़ाई से पालन करें.

आयुर्वेदीय औषधि प्रयोग – 

उन्होंने बताया कि एक जिम्मेदार आयुर्वेदीय चिकित्सक की महती भूमिका को समझते हुए मैं यह विषय आयुर्वेद के निष्णात चिकित्सको पर छोड़ता हूँ कि वो स्वयं के अनुभव एवं विवेक से  रोगी की लाक्षणिक चिकित्सा करें किन्तु कोरोना के प्रमाणित संक्रमित रोगी को अनिवार्य रूप से नोडल अधिकारी को सूचित करते हुए उसे निर्धारित केन्द्र पर भर्ती होने में सहयोग प्रदान करें.

सिद्धान्त रूप में इतना कहा जा सकता है कि व्याधि क्षमत्व में वृद्धि करने वाले योग विशेष रूप से रस रसायन, श्वास, कास एवं राजयक्ष्मा के योग आयुर्वेदीय चिकित्सक स्व विवेक एवं अनुभव से प्रयोग करें इसमें दक्षिण भारत में स्थित कुछ अनुभूत योग जिनमे दशमूल, त्रिकटु एवं वासा आदि का योग है वो शारीर  के श्वसन तन्त्र की क्षमता में वृद्धि करेंगी I गिलोय, आमलकी, हरिद्रा एवं च्वयनप्राश  का प्रयोग स्वस्थ व्यक्ति तत्परता एवं विश्वास पूर्वक करें तो कोरोना से संक्रमित होने की अवस्था में या इससे पूर्व आपके शारीर को इस लड़ाई में विजयी होने में सहायक होंगी I कोरोना के संक्रमण के पश्चात विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के तहत निर्धारित चिकित्सा केन्दों पर ही अपनी चिकित्सा कराएं

अन्त में उन्होंने बताया कि मैं आयुर्वेद का एक विद्यार्थी आप सभी यह अनुरोध करता हूँ कि यदि आप भारतीय संस्कृति के मूल्यों के साक्षात् स्वरुप आयुर्वेद में वर्णित आहार, निद्रा एवं ब्रहमचर्य के नियमों को वासंतिक ऋतुचर्या के अनुरूप इस लॉक डाउन की स्थिति में पालन करेंगे तो निश्चित रूप से आप कोरोना से युद्ध में विजयी होंगे. विश्व स्वास्थ्य संगठन भारत की तरफ अत्यन्त आशा से देख रहा है अतः हम भारतीय, भारतीय संस्कृति के अनुरूप आचरण कर एक मिसाल विश्व के सामने रख सकते हैं.



 

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