- आस्थावान काशीवासियों का जीना मुहाल
- पक्के महाल से लेकर शहर की पॉश कालोनियों तक की छतों पर बंदरो का साम्राज्य
अरशद आलम
वाराणसी। प्रधानमंत्री मोदी के संसदीय क्षेत्र और स्मार्ट सिटी की दौड़ में शामिल काशी आजकल बन्दर मेनिया से ग्रसित है। शहर में हाल फिलहाल बंदरो की सही संख्या का आकलन लगाना तो मुश्किल है, किंतु ये जान लीजिये की इस समय अगर आप शहरी क्षेत्र के निवासी है तो आपके घरो की छतो बालकनी आदि पर बंदरो का राज चल रहा है, दिन के समय सर्दी की गुनगुनी धुप का आनंद ले रहे आपके परिवार और बच्चों पर कब इन उत्पाती बंदरो का हमला हो जाएँ , बताना मुश्किल है।
कुछ वर्षों पूर्व सिगरा में इनके डर से छत से गिर कर एक मासूम अपनी जान गवां बैठा, इसी तरह अर्दली बाजार के एक बुजुर्ग के ऊपर भी इन उत्पाती बंदरो ने दिवार गिरा दी थी और वो भी करीब 15 दिन मौत से जंग लड़कर जिंदगी की लड़ाई हार गए। यूँ तो काशी के धार्मिक प्रवृति के लोग जल्दी इनसे छेड़छाड़ नहीं करते, लेकिन इन जीवो ने आजकल काशीवासियों का जीना मुहाल कर रखा है।
कुछ वर्षो पहले नगर निगम ने मथुरा से एक टीम बुलाई थी जिसको 300 रुपये प्रति बन्दर की दर से भुगतान किया गया था और वो अभियान सफल भी साबित हुआ था और हजारो बन्दर पकडे गए थे। लेकिन उस अभियान का स्याह पहलू यह था की चंदौली और नौगढ़ के जंगलो में छोड़े गए काशी के इन उदंड बंदरो ने नक्सल क्षेत्र में तैनात PAC के जवानो के कैम्प पे धावा बोल उनका जीना मुहाल कर दिया था । साथ ही आसपास के गाँववालो को भी आजिज़ कर दिया था। हालात यह हो गए थे की चंदौली जिला प्रशासन ने वाराणसी नगर निगम की किसी भी गाडी के चंदौली की सीमा में प्रवेश पर रोक लगा दी थी। और इसके साथ ही यह अभियान धाराशायी हो गया था। तब से इन बंदरो की तादात में बेतहाशा इजाफा हो चूका है और नगर निगम प्रशासन इन सब से बेखबर सोया पड़ा है। जल्द ही अगर इस दिशा में कुछ सकारात्मक कदम ना उठायें गए तो हालात और विषम होंगे और धार्मिक आस्थाओं के बंधे काशीवासी इनके डर के साये में जीने को यूँ ही विवश रहेगें ।