वाराणसी: चिकित्सा विज्ञान संस्थान बीएचयू के सूक्ष्म जीव विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रो. गोपाल नाथ की अगुवाई में वैेज्ञानिकों ने महत्वपूर्ण शोध किया है। इससे मधुमेह रोगियों को बड़ा फायदा मिलेगा। पुराने व लाइलाज समझे जाने वाले घावों के उपचार भी हो सकेगा। शोध में अत्यंत उत्साहजनक परिणाम सामने आए हैं। ये शोध अमेरिका के संघीय स्वास्थ्य विभाग के राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी सूचना केन्द्र में बीते 5 जनवरी, 2022 को प्रकाशित हुआ है।
प्रो. गोपाल नाथ ने बताया कि बहुत से घाव जहां सामान्य प्राकृतिक उपचार प्रक्रिया या तो अंतर्निहित विकृति (संवहनी और मधुमेह अल्सर आदि) के कारण रुक जाते हैं। ऐसी स्थिति में यह निरंतर संक्रमित होते रहते हैं। दूषित या गंदे घाव संक्रमण के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं। एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया से संक्रमण और बायो फिल्म निर्माण सामान्य उपचार प्रक्रिया को रोकने वाले महत्वपूर्ण कारक है। वैज्ञानिकों ने जानवरों और नैदानिक अध्ययनों में तीव्र और पुराने संक्रमित घावों की फेज थेरेपी की है। टीम ने चूहों के घाव मॉडल में स्यूडोमोनास एरुगिनोसा के खिलाफ उनकी प्रभावकारिता भी दिखाई।
पारंपरिक पुराने घाव उपचार……
पारंपरिक पुराने घावों के उपचार की अगर बात करें तो इसमें संपीड़न, वार्मिंग, वैक्यूम-असिस्टेड क्लोजर डिवाइस, सिंचाई आदि है, जो अक्सर घावों को ठीक करने में सफल होती हैं। हालांकि, कई घाव इनसे भी ठीक नहीं हो पाते। जिससे न सिर्फ बार-बार संक्रमण होते हैं, बल्कि ताजा बने रहते हैं। ऐसे में बैक्टीरियोफेज थेरेपी एंटीबायोटिक के लिए उभरता समाधान है।
बैक्टीरियोफेज एमडीआर जीवाणु संक्रमण के उपचार के लिए वैकल्पिक रोगाणुरोधी चिकित्सा के रूप में कई संभावित लाभ प्रदर्शित करते हैं। प्रो. गोपाल नाथ के नेतृत्व में हुए शोध में प्रो. एसके भारतीय, प्रो. वीके शुक्ला, डॉ. पूजा गुप्ता, डॉ. हरिशंकर सिंह, डॉ. देवराज पटेल, राजेश कुमार, डॉ. रीना प्रसाद, सुभाष लालकर्ण आदि हैं।