आशुतोष त्रिपाठी
सोशल मीडिया पर पिछले दो-तीन दिन से एक बच्ची और बुजुर्ग महिला के रोते हुए की तस्वीर काफी वायरल हो रही है. लोग इस तस्वीर को साझा कर रहे हैं. तस्वीर के साथ ही एक भावनात्मक कहानी भी बताई जा रही है कि स्कूल में पढ़ने वाली एक बच्ची जब वृद्धाश्रम पहुंची तो उसे वहां अपनी दादी मिल गईं.
इसके बाद दादी, पोती एक दूसरे से लिपटकर रोने लगीं. इस तस्वीर को अब तक हजारों लोग शेयर कर चुके हैं. यहां तक कि क्रिकेटर हरभजन सिंह ने भी इसे अपने ट्विटर अकाउंट पर शेयर किया है.
लेकिन क्या ये तस्वीर और साथ लिखी बात सच है ? क्या ये तस्वीर हाल की है ? इन सभी सवालों के जवाब हम लेकर आए हैं. इस फोटो को अपने कैमरे में उतारने वाले फोटोग्राफर का नाम है- कल्पित एस. बचेच. गुजरात के अहमदाबाद में रहने वाले कल्पित एक वरिष्ठ फोटो पत्रकार हैं और पिछले 30 साल से तस्वीरें उतार रहे हैं.
दरअसल, ये तस्वीर कल्पित ने क़रीब 11 साल पहले साल 2007 में खींची थी. ख़ुद कल्पित ने इस तस्वीर और इसके पीछे की पूरी घटना बताई है. वो दिन 12 सितंबर, 2007 था. मेरे मोबाइल पर अहमदाबाद के मणिनगर के जीएनसी स्कूल से कॉल आया. कॉल स्कूल की प्रिंसिपल रीटा बहन पंड्या का था. उन्होंने कहा कि स्कूली बच्चों के साथ वो लोग वृद्धाश्रम जा रहे हैं. और क्या मैं इस दौरे को कवर करने के लिए आ सकता हूं.
मैं तैयार हो गया और वहां से घोड़ासर के मणिलाल गांधी वृद्धाश्रम पहुंचा. वहां एक तरफ़ बच्चे बैठे थे और दूसरी तरफ़ वृद्ध लोग थे. मैंने आग्रह किया कि बच्चों और वृद्धों को साथ-साथ बैठा दिया जाए ताकि मैं अच्छी तस्वीरें ले सकूं. जैसे ही बच्चे खड़े हुए, एक स्कूली बच्ची वहां मौजूद एक वृद्ध महिला की तरफ़ देखकर फूट-फूट कर रोने लगी.
हैरानी की बात ये थी कि सामने बैठी वृद्धा भी उस बच्ची को देखकर रोने लगी. और तभी बच्ची दौड़कर वृद्ध महिला के गले लग गई और ये देखकर वहां मौजूद सभी लोग हैरान रह गए. मैंने उसी वक़्त ये तस्वीर अपने कैमरे में कैद कर ली. और फिर जाकर महिला से पूछा तो रोते हुए उन्होंने जवाब दिया कि वो दोनों दादी-पोती हैं.
बच्ची ने भी रोते हुए बताया कि ये महिला उसकी बा हैं. गुजराती में दादी को बा बोला जाता है. बच्ची ने ये भी बताया कि दादी के बिना उसकी ज़िंदगी काफ़ी सूनी हो गई थी.और ये भी बताया कि बच्ची के पिता ने उसे बताया था कि उसकी दादी रिश्तेदारों से मिलने गई है. लेकिन जब वो वृद्धाश्रम पहुंची तो पता चला कि असल में दादी कहां गई थी.
दादी और पोती का वो मिलन देखकर मेरे साथ खड़े और लोगों की आंखें भी नम हो गईं. उस माहौल को हल्का बनाने के लिए कुछ बच्चों ने भजन गाने शुरू किए.ये फ़ोटो अगले दिन दिव्य भास्कर अख़बार के पहले पन्ने पर छपी थी और उस वक़्त पूरे गुजरात में इसे लेकर चर्चा शुरू हो गई. इस तस्वीर ने कई लोगों को हिलाकर रख दिया.
मेरे तीस साल के करियर में पहली बार ऐसा हुआ कि मेरी कोई तस्वीर अखबार में छपने के दिन मुझे एक हज़ार से ज़्यादा लोगों ने फ़ोन किए. उस समय पूरे राज्य में इसी तस्वीर पर चर्चा हो रही थी. लेकिन जब दूसरे दिन मैं दूसरे मीडियाकर्मियों के साथ इस वृद्ध महिला का इंटरव्यू लेने पहुंचा तो उन्होंने कहा कि वो अपनी मर्ज़ी से वृद्धाश्रम आई हैं और मर्ज़ी से वहां रह रही हैं.”