डॉ शम्मी कुमार
पूरी दुनिया आज कोरोना जैसी महामारी से त्रस्त है। जिसको विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 का नाम दिया है। अभी तक के शोध से जो तथ्य सामने आए हैं वह बतलाते हैं कि नवंबर, 2019 में चीन के एक शहर वुहान में चमगादड़ द्वारा काटे गए एक स्तनपाई जंतु पैंगवलीन का मांस खाने से यह वायरस मानव शरीर में प्रवेश किया है।
शुरुआत में चीन ने इस महामारी के बारे में वैश्विक जगत से छुपाने का भरपूर प्रयास किया लेकिन जब यह महामारी इटली और ईरान होते हुए पूरे यूरोपीय और अमेरिकी देशों को चपेट में लेना शुरू किया तो चीन ने इससे सन्दर्भित जानकारियों को सबसे साझा करना शुरू किया। तब तक इतना विलंब हो चुका था की महज 4 माह में ही लगभग साढ़े छ लाख लोग इस वायरस की चपेट में आ गए और अमेरिका, ईटली ,स्पेन ,जर्मनी ,यूनाइटेड किंगडम ,फ्रांस सहित एशिया और अफ्रीका के लगभग 70 देश के हजारों लोगो की जान इस वायरस ने ले लिया।
यह विषय सोचनीय है की चीन के एक शहर में सामने आयी यह बीमारी महज 100 दिनों में पूरी दुनिया को अपने कब्जे में लेकर मानवीय जीवन के समक्ष कैसे संकट पैदा करने में सफल हो गयी।जब दुनिया बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध की ओर बढ़ रही थी तो उस समय पूरा विश्व दो खेमो में बट गया ।एक संयुक्त राज्य अमेरिका का खेमा और दूसरा सोवियत संघ रूस का खेमा। जब दुनिया के सभी देश, दो महाशक्तियों के बीच हो रहे शीत युद्ध में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से लड़ रहे थे।80 के दशक में दो घटनाएं हुई।
एक शीत युद्ध में रूस की हार और उसका विखंडन, दूसरा एशिया के तेल कुओं पर अमेरिकी कंपनियों को पूर्णतया कब्जा। बढ़ती जनसंख्या हेतु अतिरिक्त ऊर्जा की मांग ने दुनिया में ईंधन और तकनीकी की लड़ाई की शुरुआत की और इस लड़ाई में अमेरिका विजय रहा ।इसके कारण बाजार में अमेरिकी मुद्रा सर्वशक्तिशाली हो गई और शायद यह भी एक कारण था शीतयुद्ध में रूस के हारने का। नब्बे के दशक में पूँजी के ठेकेदारों ने अपनी ताकत का प्रयोग कर पूरी दुनिया के व्यापारिक सीमाओं को जबरदस्ती खुलवाकर पूंजी के प्रवाह की सुनिश्चितता कायम करने हेतु प्रयास करने लगे।
यह एक नई दुनिया सबके सामने आई और उसमें व्यापार करने हेतु पैदा हुई बहुराष्ट्रीय कंपनियां। इस व्यवस्था को समाज शास्त्रियों ने वैश्वीकरण का नाम दिया और ऐसी अर्थव्यवस्था को अर्थशास्त्रियों द्वारा ‘मुक्त अर्थव्यवस्था’ जैसे शब्दों से परिभाषित किया गया।इसके साथ ही प्रमुख बदलाव यह हुआ कि मुक्त अर्थव्यवस्था वाली इस दुनिया में बाजार राष्ट्र के अधिकार से निकल कर सिर्फ कुछ शक्तिशाली राष्ट्रों के हाथों में चला गया।
बिल्कुल पूर्व के 300 साल में जो कार्य साम्राज्यवादी देश ब्रिटेन आदि जो करते आ रहे थे वही कार्य अब मजबूत मुद्रा वाले देश अमेरिका इत्यादि करते नजर आए। 21 वीं शताब्दी के शुरुआत से वैश्विक आवश्यकताओं के केंद्र में ऊर्जा और तकनीकी के साथ साथ बढ़ रही उपभोक्तावादी जनसंख्या के लिए जीवन उत्पाद के मांगो में भी भारी इजाफा होता है और सस्ते उत्पाद पैदा करने की होड़ सी लग जाती है।
इस लड़ाई में अत्यधिक जनसांख्यिकीय वाले अलोकतांत्रिक देश चीन सस्ते श्रम और शासकीय शोषण के बदौलत मजबूती से उभरकर सामने आता है और जब हम इस नई शताब्दी के दूसरे दशक में प्रवेश करते है तो पूंजी के संघर्ष में अमेरिका के सामने एक देश जो मजबूती से टक्कर देते हुए खड़ा है उसका नाम चीन है ।आज पूरी दुनिया अमेरिका और चीन के बीच हो रहे ट्रेड वॉर में उलझी हुई है। लगभग 15 हफ्तों में पूरी दुनिया में कोरोनावायरस के फैलने के तत्कालिक कारणों को देखेंगे तो उसमें महत्वपूर्ण कारण चीन द्वारा शुरू की गई ‘वन बेल्ट वन रोड’ परियोजना है।
इस परियोजना का प्रमुख भागीदार देश इटली हैऔर इस परियोजना का भी एक मात्र उद्देश्य चीन के उत्पादों से पूरी दुनिया को भर देना है।आज हम जब नव उदारवादी व्यवस्था में प्रवेश कर रहे हैं तब इस व्यवस्था को संचालित करने में जो अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता पड़ रही है वह अमेरिका और चीन के बीच हो रहे ट्रेड वार को और खतरनाक दौर में पहुंचा रही है। जिसमें बाजार के भी नैतिक मूल्यों को ताक पर रखकर इस व्यापार संघर्ष को अपने कब्जे में करने की कोशिश दुनिया के दोनों शक्तिशाली देश करते नजर आ रहे हैं।
पूर्णतया यह कहा जा सकता है कि कोरोना जैसे महामारी को भयंकर संकट बनाने में अंधाधुंध अपानये जा रहे इस वैश्वीकरणीय बाजारवादी व्यस्था का महत्वपूर्ण योगदान है ।क्योंकि इस वैश्वीकरण ने जो प्रतियोगिता पूरी दुनिया में शुरू की है उसमें राष्ट्रों को अपने नागरिकों के ऊपर पूंजी की तरलता को तरजीह देना मजबूरी हो गया है ।आखिर किसी राष्ट्र के कुछ लोगों द्वारा की जा रही गलतियों का दंड पूरी दुनिया क्यों भुगतेंगी और अगर नहीं तो हम सभी को भूमंडलीकरण जैसी वैश्विक व्यवस्था के नकारात्मक प्रभाव पर विचार कर राष्ट्र समूहों को कठोर कदम उठाने होंगे क्योंकि राष्ट्र नागरिकों से बनता है,पूंजी के अतिउत्पादकता की होड़ में जाने से नही।