पुणे
महाराष्ट्र के पुणे में बाल गंगाधर तिलक जैसे स्वतंत्रता सैनानियों द्वारा खोले गए एक स्कूल ने अपनी पुरानी परंपरा खत्म कर दी है। इस स्कूल ने 138 साल बाद मौजूदा सेशन से लड़कियों को एडमिशन देने की तैयारी कर ली है। लिंग भेद को खत्म करने के लिए स्कूल मैनेजमेंट ने यह फैसला लिया है।
बाल गंगाधर तिलक के अलावा, गोपाल गणेश अगरकर और विष्णु शास्त्री चिपलंकर जैसे समाज सुधारकों ने साल 1880 में ‘द न्यू इंग्लिश स्कूल’ की शुरुआत की थी। स्कूल डेकन एजुकेशन सोसाइटी द्वारा चलाया जा रहा था और यहां 1936 तक को-एजुकेशन सिस्टम था, यानी लड़का-लड़की साथ पढ़ते थे। इसके बाद एजुकेशन सोसाइटी ने सिर्फ लड़कियों के लिए अहिल्यादेवी स्कूल की स्थापना की।
प्रिंसिपल नागेश मोने की दलील
हाल में स्कूल के प्रिंसिपल नियुक्त किए गए नागेश मोने ने कहा कि वे दिन गए जब लड़के और लड़कियां अलग-अलग स्कूलों में पढ़ते थे। साथ पढ़ने से उन्हें पता चलता है कि स्त्री और पुरुष बराबर होते हैं। अगर हमें जेंडर न्यूट्रल माहौल बनाना है तो छोटी उम्र से ही बच्चों की एकसाथ स्कूलिंग कराना जरूरी है। नए सेशन के लिए यहां अब तक 25 लड़कियों का एडमिशन हो चुका है।